गूगल’ की चमत्कारिक सफलता की कहानी कैलिफोर्निया की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के दो छात्रों के बीच दोस्ती के साथ शुरू हुई। शुरुआत में इन दोस्तों ने गूगल को एक कार गैराज से शुरू किया था, जो आज एक ब्रान्ड के तौर पर दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है। आज गूगल की 17वीं सालगिरह मना रहा है। इंटरनेट सर्च मशीन से शुरू कर गूगल अब ई-मेल, फोटो और वीडियो, गूगल मैप और मोबाइल फोन जैसी सेवाएं देने वाली ऑलराउंडर कंपनी बन गई है। सभी सेवाएं मुफ्त हैं। कमाई होती है व्यावसायिक कंपनियों से मिलने वाले विज्ञापनों से। आज गूगल को 17 साल पूरे हो गए हैं।
मुफ्त में होती है गूगल की कमाई
यूजर्स जिन सेवाओं को मुफ्त समझते हैं, गूगल को उन्हीं के बल पर कहीं और से कमाई होती है। अन्य कंपनियां यूजर्स के बारे में जानकारियां गूगल से खरीदती हैं या उसे अपने विज्ञापनों के लिए पैसा देती हैं। विज्ञापन पर हर क्लिक के लिए गूगल चंद सेंट से लेकर सैकड़ों डॉलर तक वसूलता है।
कहां से पड़ा नाम
ऐसी मान्यता है- एक के पीछे 100 शून्य लगा दिए जाएं तो बनती है एक अनूठी संख्या ‘गोगोल’, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे एक 9 साल के बच्चे ने गढ़ा था। इसी शब्द के अपभ्रंश से बना है शब्द ‘गूगल’, जिसके बारे में कहा जाता है कि आज अगर वह न हो, तो दुनिया खाली-खाली सी लगेगी।
आपस में नहीं पटती थी दोनों की
सर्जि ब्रिन और लैरी पेज 22-23 साल के थे, जब 1995 में वे पहली बार मिले। उस समय दोनों के बीच बिल्कुल नहीं पटती थी। हर बात पर बहस होती थी। दोनों के माता-पिता अपने जमाने के पढ़े-लिखे टैक्नोक्रेट्स थे।
समस्या ने बनाया दोस्त
लैरी और सर्जि को दोस्त एक समस्या ने बनाया। वह थी इंटरनेट इन्फॉर्मेशन के महासागर में से किसी खा़स सूचना को कैसे ढूंढ़ा जाए? दोनों ने मिलकर एक सर्च-मशीन बनाई, एक ऐसा कम्प्यूटर, जो कुछ निश्चित सिद्धांतों और नियमों के अनुसार किसी इन्फॉर्मेशन में से ठीक वह जानकारी ढूंढ़कर निकाले, जो यूजर जानना चाहता है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में ही किए आरंभिक परीक्षण
सबसे पहला सिद्धांत यह था कि हाइपर लिंक करके जिस वेबसाइट की ओर इशारा किया गया हो, वह वेबसाइट उतनी ही महत्वपूर्ण होनी चाहिए। यूजर जिस शब्द, इन्फॉर्मेशन या सवाल के जवाब की खोज कर रहे हैं, वह इंटरनेट पर उपलब्ध होना चाहिए। वेबसाइटों को छान कर ऐसी पहेली को लैरी और सर्जि ने मिलकर सुलझाया। दोनों ही प्रोफेशनल दोस्तों ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में आरंभिक परीक्षण किए। इसके लिए 11 लाख डॉलर धन जुटाया।
कार-गैरेज में बनी गूगल इनकॉरपोरेटेड
दोनों ने 4 सितंबर 1998 को, गूगल इनकॉरपोरेटेड के नाम से मेनलो पार्क, कैलिफोर्निया के एक कार गैरेज में अपनी कंपनी बनाई और काम शुरू कर दिया। सिर्फ दो वर्षों में ही गूगल का नाम सबकी जुबान पर था।
सितंबर 2007 में गूगल ने पूरा किया अपना पहला दशक
इंटरनेट को दुनिया में आए दो दशक से ज्यादा समय हो गया है, जबकि गूगल ने सितंबर 2007 को अपना पहला दशक पूरा किया था, तब भी दोनों एक-दूसरे के पर्याय बने हुए हैं।
इस्तेमाल बढ़ने के साथ बढ़ते गए शेयर
इंटरनेट का इस्तेमाल जितना बढ़ रहा है, गूगल के शेयर भी उतने ही चढ़ रहे हैं। अगस्त 2004 में गूगल ने जब पहली बार शेयर बाजार में कदम रखा, तब उसके शेयर 85 डॉलर में बिक रहे थे। तीन वर्ष बाद, नवंबर 2007 में इसके शेयर उछलकर 747 डॉलर पर पहुंच गया था। फिलहाल गूगल का हर शेयर करीब 614.34 डॉलर में बिक रहा है।
एंड्रॉइड खरीद से छाया स्मार्टफोन बाजार में
आज एंड्रॉइड सॉफ्टवेयर का मालिक गूगल है, लेकिन इसकी खोज गूगल ने नहीं की थी। एंड्रॉइड इंक नामक कंपनी की स्थापना एंडी रूबिन ने कुछ लोगों के साथ मिलकर 2003 में की थी। बाद में कंपनी की माली हालत खराब हो गई, तभी गूगल की नजर इस कंपनी पर पड़ी जो स्मार्टफोन्स के लिए एक नए तरह का सॉफ्टवेयर बनाने में जुटी थी।
2005 में गूगल ने इस कंपनी को खरीद लिया। एंड्रॉइड की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आज स्मार्टफोन के करीब 80 फीसदी बाजार पर इसका कब्जा है, यानी हर पांच में से चार स्मार्टफोन एंड्रॉइड ऑपरेटिंग सिस्टम पर चल रहे हैं।
एक अरब लोगों तक पहुंचेगा एंड्रॉइड
हर दिन 15 लाख से ज्यादा लोग नया एंड्रॉएड डिवाइस खरीद रहे हैं। इसी साल एंड्रॅाइड एक ऐसे आंकड़े को छू लेगा, जिसके आसपास पहुंचना किसी भी कंपनी के लिए एक सपना होता है। एक अरब लोगों के हाथों में पहुंचने का सफर एंड्रॉइड ने सिर्फ छह सालों में पूरा कर लिया।
.मुफ्त सेवा से सैंकड़ों डॉलर की कमाई
ऑस्ट्रिया के पत्रकार गेराल्ड राइशी ने गूगल की कार्यशैली पर जर्मन भाषा में किताब लिखी है। उनके अनुसार, जब भी यूजर गूगल की सेवाएं इस्तेमाल करते हैं, गूगल उनकी जानकारियां जमा करता रहता है, जिनकी यूजर्स को भनक तक नहीं होती।
गूगल जैसी साइट्स पर अपने शौक, म्यूजिक या बर्थ प्लेस जैसी जानकारी बताते हैं तो गूगल उस जानकारी को सेव कर लेता है। इससे उसे यह जानने में आसानी होती है कि इंटरनेट पर यूजर ने किन साइट्स पर विजिट किया, क्या सर्च किया और किस चीज का जवाब उसे नहीं मिला।